मख़मूर सईदी के शेर
हो जाए जहाँ शाम वहीं उन का बसेरा
आवारा परिंदों के ठिकाने नहीं होते
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मैं उस के वादे का अब भी यक़ीन करता हूँ
हज़ार बार जिसे आज़मा लिया मैं ने
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बुतों को पूजने वालों को क्यूँ इल्ज़ाम देते हो
डरो उस से कि जिस ने उन को इस क़ाबिल बनाया है
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सुर्ख़ियाँ ख़ून में डूबी हैं सब अख़बारों की
आज के दिन कोई अख़बार न देखा जाए
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टैग : अख़बार
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घर में रहा था कौन कि रुख़्सत करे हमें
चौखट को अलविदा'अ कहा और चल पड़े
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कुछ यूँ लगता है तिरे साथ ही गुज़रा वो भी
हम ने जो वक़्त तिरे साथ गुज़ारा ही नहीं
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ग़म ओ नशात की हर रहगुज़र में तन्हा हूँ
मुझे ख़बर है मैं अपने सफ़र में तन्हा हूँ
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टैग : तन्हाई
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रख़्त-ए-सफ़र जो पास हमारे न था तो क्या
शौक़-ए-सफ़र को साथ लिया और चल पड़े
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ये अपने दिल की लगी को बुझाने आते हैं
पराई आग में जलते नहीं हैं परवाने
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टैग : परवाना
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मुद्दतों बाद हम किसी से मिले
यूँ लगा जैसे ज़िंदगी से मिले
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दिल पे इक ग़म की घटा छाई हुई थी कब से
आज उन से जो मिले टूट के बरसात हुई
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मस्लहत के हज़ार पर्दे हैं
मेरे चेहरे पे कितने चेहरे हैं
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ज़बाँ पे शुक्र ओ शिकायत के सौ फ़साने हैं
मगर जो दिल पे गुज़रती है क्या कहा जाए
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कितनी दीवारें उठी हैं एक घर के दरमियाँ
घर कहीं गुम हो गया दीवार-ओ-दर के दरमियाँ
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उन से उम्मीद-ए-मुलाक़ात के बाद ऐ 'मख़मूर'
मुद्दतों तक न ख़ुद अपने से मुलाक़ात हुई
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बुझती आँखों में सुलगते हुए एहसास की लौ
एक शो'ला सा चमकता पस-ए-शबनम देखा
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रास्ते शहर के सब बंद हुए हैं तुम पर
घर से निकलोगे तो 'मख़मूर' किधर जाओगे
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अब आ गए हो तो ठहरो ख़राबा-ए-दिल में
ये वो जगह है जहाँ ज़िंदगी सँवरती है
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जानिब-ए-कूचा-ओ-बाज़ार न देखा जाए
ग़ौर से शहर का किरदार न देखा जाए
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बस यूँही हम-सरी-ए-अहल-ए-जहाँ मुमकिन है
दम-ब-दम अपनी बुलंदी से उतरता जाऊँ
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'मख़मूर' कैसी राह थी हम जिस पे चल पड़े
आई थी जिस तरफ़ से उसी सम्त फिर गई
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