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आल-ए-अहमद सुरूर के शेर
आल-ए-अहमद सुरूरसाहिल के सुकूँ से किसे इंकार है लेकिन
तूफ़ान से लड़ने में मज़ा और ही कुछ है
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आल-ए-अहमद सुरूरहम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका
यूँ भी हुआ हिसाब बराबर कभी कभी
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आल-ए-अहमद सुरूरतुम्हारी मस्लहत अच्छी कि अपना ये जुनूँ बेहतर
सँभल कर गिरने वालो हम तो गिर गिर कर सँभले हैं
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आल-ए-अहमद सुरूरआती है धार उन के करम से शुऊर में
दुश्मन मिले हैं दोस्त से बेहतर कभी कभी
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आल-ए-अहमद सुरूरहुस्न काफ़िर था अदा क़ातिल थी बातें सेहर थीं
और तो सब कुछ था लेकिन रस्म-ए-दिलदारी न थी
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आल-ए-अहमद सुरूरबस्तियाँ कुछ हुईं वीरान तो मातम कैसा
कुछ ख़राबे भी तो आबाद हुआ करते हैं
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टैग : वीरानी
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आल-ए-अहमद सुरूरलोग माँगे के उजाले से हैं ऐसे मरऊब
रौशनी अपने चराग़ों की बुरी लगती है
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आल-ए-अहमद सुरूरआज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी
लुत्फ़ में तेरे कहीं कोई कमी है साक़ी
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टैग : तिश्नगी
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आल-ए-अहमद सुरूरजहाँ में हो गई ना-हक़ तिरी जफ़ा बदनाम
कुछ अहल-ए-शौक़ को दार-ओ-रसन से प्यार भी है
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आल-ए-अहमद सुरूरमय-कशी के भी कुछ आदाब बरतना सीखो
हाथ में अपने अगर जाम लिया है तुम ने
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टैग : मय-कशी
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आल-ए-अहमद सुरूरहम तो कहते थे ज़माना ही नहीं जौहर-शनास
ग़ौर से देखा तो अपने में कमी पाई गई
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आल-ए-अहमद सुरूरकुछ तो है वैसे ही रंगीं लब ओ रुख़्सार की बात
और कुछ ख़ून-ए-जिगर हम भी मिला देते हैं
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आल-ए-अहमद सुरूरवो तबस्सुम है कि 'ग़ालिब' की तरह-दार ग़ज़ल
देर तक उस की बलाग़त को पढ़ा करते हैं
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टैग : मिर्ज़ा ग़ालिब
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आल-ए-अहमद सुरूरजो तिरे दर से उठा फिर वो कहीं का न रहा
उस की क़िस्मत में रही दर-बदरी कहते हैं
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आल-ए-अहमद सुरूरये क्या ग़ज़ब है जो कल तक सितम-रसीदा थे
सितमगरों में अब उन का भी नाम आया है
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आल-ए-अहमद सुरूरतमाम उम्र कटी उस की जुस्तुजू करते
बड़े दिनों में ये तर्ज़-ए-कलाम आया है
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आल-ए-अहमद सुरूरअभी आते नहीं उस रिंद को आदाब-ए-मय-ख़ाना
जो अपनी तिश्नगी को फ़ैज़-ए-साक़ी की कमी समझे
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टैग : रिंद
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आल-ए-अहमद सुरूरदास्तान-ए-शौक़ कितनी बार दोहराई गई
सुनने वालों में तवज्जोह की कमी पाई गई
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आल-ए-अहमद सुरूरअब धनक के रंग भी उन को भले लगते नहीं
मस्त सारे शहर वाले ख़ून की होली में थे
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आल-ए-अहमद सुरूरहस्ती के भयानक नज़्ज़ारे साथ अपने चले हैं दुनिया से
ये ख़्वाब-ए-परेशाँ और हम को ता-सुब्ह-ए-क़यामत सोना है
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