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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Mushtaq Ahmad Yusufi

1923 - 2018 | Karachi, Pakistan

Most prominent humorist and satirist of Pakistan; author of extraordinary works "Chiraagh Tale" and "Aab-e-Gum". He received Sitara-e-Imtiaz and Hilal-i-Imtiaz, the highest literary honours by the Government of Pakistan.

Most prominent humorist and satirist of Pakistan; author of extraordinary works "Chiraagh Tale" and "Aab-e-Gum". He received Sitara-e-Imtiaz and Hilal-i-Imtiaz, the highest literary honours by the Government of Pakistan.

Quotes of Mushtaq Ahmad Yusufi

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जब शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीने लगें तो समझ लो कि शेर की नीयत और बकरी की अक़्ल में फ़ितूर है।

आदमी बुल-हवसी में कमज़ोरी या काहिली दिखाये तो निरी आशिक़ी रह जाती है।

आदमी एक-बार प्रोफ़ेसर हो जाए तो उम्र-भर प्रोफ़ेसर ही रहता है, ख़ाह बाद में समझदारी की बातें ही क्यों करने लगे।

हिस्स-ए-मेज़ाह ही दर अस्ल इन्सान की छटी हिस है। यह हो तो इन्सान हर मुक़ाम से ब-आसानी गुज़र जाता है।

मज़ाह निगार के लिए नसीहत, फ़ज़ीहत, और फ़हमाइश हराम हैं।

आदमी अगर क़ब्ल-अज़-वक़्त मर सके तो बीमे का मक़सद ही फ़ौत हो जाता है।

मर्ज़ का नाम मालूम हो जाए तो तकलीफ़ तो दूर नहीं होती, उलझन दूर हो जाती है।

सुबह उस वक़्त नहीं होती जब सूरज निकलता है। सुबह उस वक़्त होती है जब आदमी जाग उठे।

इस ज़माने में सौ फ़ी सद सच्च बोल कर ज़िंदगी करना ऐसा ही है जैसे बज्री मिलाए बग़ैर सिर्फ सिमेंट से मकान बनाना।

नज़र-ए-इंसाफ़ से देखा जाए तो मौसम की बुराई तहज़ीब-ए-अख़लाक़ का एक मुअस्सिर ज़रिया है। इसलिए कि अगर मौसम को बुरा-भला‏ कह कर दिल का ग़ुबार निकालना शहरी आदाब में दाख़िल होता तो लोग मजबूरन एक दूसरे को गालियाँ देने लगते।

मुसलमान हमेशा एक अमली क़ौम रहे हैं। वो किसी ऐसे जानवर को मुहब्बत से नहीं पालते जिसे ज़िब्ह कर के खा ना सकें।

सूद और सर्तान को बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।

दिलों के क़ुफ़्ल (ताला) की कलीद (चाबी) लफ़्ज़ में नहीं लहजे में होती है।

दुनिया में ग़ीबत से ज़्यादा जल्दी हज़म होने वाली कोई चीज़ नहीं।

मिडिल क्लास ग़रीबी की सबसे क़ाबिल-ए-रहम और ला-इलाज क़िस्म वो है जिसमें आदमी के पास कुछ हो लेकिन उसे किसी चीज़ की कमी महसूस हो।

भुट्टे, मुर्ग़ी की टाँग, प्याज़ और गन्ने पर जब तक दाँत लगे, रस पैदा नहीं होता।

मुर्ग़ की आवाज़ उसकी जसामत से कम-अज़-कम सौ गुना ज़्यादा होती है। मेरा ख़्याल है कि अगर घोड़े की आवाज़ इसी मुनासिबत से होती तो तारीख़ी जंगों में तोप चलाने की ज़रूरत पेश आती।

शेर कितना ही फुजूल और कमज़ोर क्यों ना हो उसे ख़ुद काटना और हज़्फ़ करना इतना ही मुश्किल है जितना अपनी औलाद को बदसूरत कहना या ज़ंबूर से अपना हिलता हुआ दाँत ख़ुद उखाड़ना।

बुढ़ापे की शादी और बैंक की चौकीदारी में ज़रा फ़र्क़ नहीं। सोते में भी आँख खुली रखनी पड़ती है।

आपने शायद देखा होगा कि चीनियों का चेहरा उ'म्र से बे-नियाज़ होता है और अंग्रेज़ों का जज़्बात से आरी। बल्कि बा'ज़-‏औक़ात तो चेहरे से भी आरी होता है।‏

अच्छा उस्ताद होने के लिए आलिम होने की शर्त नहीं।

लाहौर की बाअ्ज़ गलियाँ इतनी तंग हैं कि अगर एक तरफ़ से औरत रही हो और दूसरी तरफ़ से मर्द तो दरमियान में सिर्फ़ निकाह की गुंजाइश बचती है।

Daagh To Do Hi Cheezon Par Sajta Hai, Dil Aur Jawaani.

Daagh To Do Hi Cheezon Par Sajta Hai, Dil Aur Jawaani.

ख़ाली बोरी और शराबी को कौन खड़ा कर सकता है।

मर्द इश्क़-ओ-आशिक़ी सिर्फ़ एक मर्तबा करता है, दूसरी मर्तबा अय्याशी और उसके बाद निरी अय्याशी।

एक उम्र ऐसी आती है कि आदमी को तोहमत से भी ख़ुशी होती है।

मूंगफली और आवारगी में ख़राबी यह है कि आदमी एक दफ़ा शुरू कर दे तो समझ में नहीं आता, ख़त्म कैसे करे।

अंग्रेज़ों के मुतअ'ल्लिक़ ये मशहूर है कि वो तबअ'न कम-गो वाक़े' हुए हैं। मेरा ख़याल है कि वो फ़क़त खाने और दाँत उखड़वाने‏ के लिए मुँह खोलते हैं।

देगची से तहज़ीब-याफ़्ता इंसान वो काम लेता है जो क़दीम ज़माने में मे'दे से लिया जाता था। या'नी ग़िज़ा को गलाना।

अच्छे उस्ताद के अंदर एक बच्चा बैठा होता है जो हाथ उठा-उठा कर और सर हिला-हिला कर बताता जाता कि बात समझ में आई कि नहीं।

दुश्मनों के हस्ब-ए-अदावत तीन दर्जे हैं, दुश्मन दुश्मन-ए-जानी, और रिश्तेदार।

बढ़िया सिगरेट पीते ही हर शख़्स को मुआ'फ़ कर देने को जी चाहता है... ख़्वाह वो रिश्तेदार ही क्यों हो।

पहाड़ और अधेड़ औरत दर अस्ल ऑयल पेंटिंग की तरह होते हैं, उन्हें ज़रा फ़ासले से देखना चाहिए।

अच्छे तंज़निगार तने हुए रस्से पर इतरा-इतरा कर करतब नहीं दिखाते, बल्कि ‘रक़्स ये लोग किया करते हैं तलवारों पर’

आदमी को ख़ाना अपनी बीवी के हाथ का पचता है और पान पराई के हाथ का रचता है।

जवान लड़की की एड़ी में भी आँखें होती हैं। वह चलती है तो उसे पता होता है कि पीछे कौन, कैसी नज़रों से देख रहा है।

शरीफ़ घरानों में आई हुई दुल्हन और जानवर तो मर कर ही निकलते हैं।

गुंजान कारोबारी शहर में मछली और मेहमान पहले ही दिन बदबू देने लगते हैं।

नशा और आत्मकथा में जो ना खुले उससे डरना चाहिए।

जिस दिन बच्चे की जेब से फ़ुज़ूल चीज़ों के बजाये पैसे बरामद हों तो समझ लेना चाहिए कि उसे बेफ़िक्री की नींद कभी नसीब नहीं होगी।

माज़ी हर शैय के गिर्द एक रूमानी हाला खींच देता है, गुज़रा हुआ दर्द भी सुहाना लगता है।

इन्सान का कोई काम बिगड़ जाए तो नाकामी से इतनी कोफ़्त नहीं होती जितनी उन बिन मांगे मश्वरों और नसीहतों से होती है जिनसे हर वो शख़्स नवाज़ता है जिसने कभी उस काम को हाथ तक नहीं लगाया।

‏सच तो ये है कि हुकूमतों के अ'लावा कोई भी अपनी मौजूदा तरक़्क़ी से मुत्मइन नहीं होता।

उम्र-ए-तबीई तक तो सिर्फ़ कव्वे, कछुवे, गधे और वो जानवर पहुंचते हैं जिनका खाना शर्अ़न हराम है।

मर्द की पसंद वो पुल-सिरात है जिस पर कोई मोटी औरत नहीं चल सकती।

ईजाद और औलाद के लच्छन पहले ही से मालूम हो जाया करते तो दुनिया में कोई बच्चा होने देता और ईजाद।

थाने, हवालात या जेल में आदमी चार घंटे भी गुज़ार ले तो ज़िंदगी और हज़रत-ए-इन्सान के बारे में इतना कुछ सीख लेगा कि यूनिवर्सिटी में चालीस बरस रह कर भी नहीं सीख सकता।

आप राशी, ज़ानी और शराबी को हमेशा ख़ुश-अख़्लाक़, मिलनसार और मीठा पाएँगे। इस वास्ते कि वह नख़्वत, सख़्त गिरी और बद-मिज़ाजी अफोर्ड ही नहीं कर सकते।

बात ये है कि घरेलू बजट के जिन मसाइल पर मैं सिगरेट पी पी कर ग़ौर किया करता था, वो दर-अस्ल पैदा ही कसरत-ए-‏सिगरेट-नोशी से हुए थे।

जब आदमी को यह मालूम हो कि उसकी नाल कहाँ गड़ी है और पुरखों की हड्डियां कहाँ दफ़्न हैं तो मनी प्लांट की तरह हो जाता है। जो मिट्टी के बग़ैर सिर्फ़ बोतलों में फलता-फूलता है।

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