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पाकिस्तान के चर्चित शायर। अपनी ग़ज़ल ' मैं ख़याल हूँ किसी और का ' के लिए मशहूर।

पाकिस्तान के चर्चित शायर। अपनी ग़ज़ल ' मैं ख़याल हूँ किसी और का ' के लिए मशहूर।

सलीम कौसर के शेर

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वो जिन के नक़्श-ए-क़दम देखने में आते हैं

अब ऐसे लोग तो कम देखने में आते हैं

कैसे हंगामा-ए-फ़ुर्सत में मिले हैं तुझ से

हम भरे शहर की ख़ल्वत में मिले हैं तुझ से

साए गली में जागते रहते हैं रात भर

तन्हाइयों की ओट से झाँका कर मुझे

तुम तो कहते थे कि सब क़ैदी रिहाई पा गए

फिर पस-ए-दीवार-ए-ज़िंदाँ रात-भर रोता है कौन

बहुत दिनों में कहीं हिज्र-ए-माह-ओ-साल के बाद

रुका हुआ है ज़माना तिरे विसाल के बाद

पुकारते हैं उन्हें साहिलों के सन्नाटे

जो लोग डूब गए कश्तियाँ बनाते हुए

जो मिरी रियाज़त-ए-नीम-शब को 'सलीम' सुब्ह मिल सकी

तो फिर इस के मअ'नी तो ये हुए कि यहाँ ख़ुदा कोई और है

अब जो लहर है पल भर बाद नहीं होगी यानी

इक दरिया में दूसरी बार उतरा नहीं जा सकता

देखते कुछ हैं दिखाते हमें कुछ हैं कि यहाँ

कोई रिश्ता ही नहीं ख़्वाब का ताबीर के साथ

साँस लेने से भी भरता नहीं सीने का ख़ला

जाने क्या शय है जो बे-दख़्ल हुई है मुझ में

कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए

वो सो गया है मुझे ख़्वाब से जगाते हुए

जुदाई भी होती ज़िंदगी भी सहल हो जाती

जो हम इक दूसरे से मसअला तब्दील कर लेते

तमाम उम्र सितारे तलाश करता फिरा

पलट के देखा तो महताब मेरे सामने था

भला वो हुस्न किस की दस्तरस में सका है

कि सारी उम्र भी लिक्खें मक़ाला कम रहेगा

हम ने तो ख़ुद से इंतिक़ाम लिया

तुम ने क्या सोच कर मोहब्बत की

दस्त-ए-दुआ को कासा-ए-साइल समझते हो

तुम दोस्त हो तो क्यूँ नहीं मुश्किल समझते हो

तू ने देखा नहीं इक शख़्स के जाने से 'सलीम'

इस भरे शहर की जो शक्ल हुई है मुझ में

कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से

कभी दिल पर आँच नहीं आती कभी रंग ख़राब नहीं होता

अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा

ग़ज़ल में अब के भी तेरा हवाला कम रहेगा

दुनिया अच्छी भी नहीं लगती हम ऐसों को 'सलीम'

और दुनिया से किनारा भी नहीं हो सकता

मैं उसे तुझ से मिला देता मगर दिल मेरे

मेरे कुछ काम नहीं आए वसाइल मेरे

मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है

सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है

क़दमों में साए की तरह रौंदे गए हैं हम

हम से ज़ियादा तेरा तलबगार कौन है

मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला

सूरत-ए-हाल के लिए वाक़िफ़-ए-हाल चाहिए

तुम ने सच बोलने की जुरअत की

ये भी तौहीन है अदालत की

वक़्त रुक रुक के जिन्हें देखता रहता है 'सलीम'

ये कभी वक़्त की रफ़्तार हुआ करते थे

रात को रात ही इस बार कहा है हम ने

हम ने इस बार भी तौहीन-ए-अदालत नहीं की

याद का ज़ख़्म भी हम तुझ को नहीं दे सकते

देख किस आलम-ए-ग़ुर्बत में मिले हैं तुझ से

ये आग लगने से पहले की बाज़-गश्त है जो

बुझाने वालों को अब तक धुआँ बुलाता है

मोहब्बत अपने लिए जिन को मुंतख़ब कर ले

वो लोग मर के भी मरते नहीं मोहब्बत में

अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं

जो यहाँ आबाद हैं उन पर भी घर खुलता नहीं

ज़ोरों पे 'सलीम' अब के है नफ़रत का बहाव

जो बच के निकल आएगा तैराक वही है

मैं किसी के दस्त-ए-तलब में हूँ तो किसी के हर्फ़-ए-दुआ में हूँ

मैं नसीब हूँ किसी और का मुझे माँगता कोई और है

मुझे सँभालने में इतनी एहतियात कर

बिखर जाऊँ कहीं मैं तिरी हिफ़ाज़त में

तुझे दुश्मनों की ख़बर थी मुझे दोस्तों का पता नहीं

तिरी दास्ताँ कोई और थी मिरा वाक़िआ कोई और है

कुछ इस तरह से वो शामिल हुआ कहानी में

कि इस के बाद जो किरदार था फ़साना हुआ

'सलीम' अब तक किसी को बद-दुआ दी तो नहीं लेकिन

हमेशा ख़ुश रहे जिस ने हमारा दिल दुखाया है

मिरी रौशनी तिरे ख़द्द-ओ-ख़ाल से मुख़्तलिफ़ तो नहीं मगर

तू क़रीब तुझे देख लूँ तू वही है या कोई और है

अहल-ए-ख़िरद को आज भी अपने यक़ीन के लिए

जिस की मिसाल ही नहीं उस की मिसाल चाहिए

मैं जानता हूँ मकीनों की ख़ामुशी का सबब

मकाँ से पहले दर-ओ-बाम से मिला हूँ मैं

ये लोग इश्क़ में सच्चे नहीं हैं वर्ना हिज्र

इब्तिदा कहीं इंतिहा में आता है

ख़ामोश सही मरकज़ी किरदार तो हम थे

फिर कैसे भला तेरी कहानी से निकलते

मैं ने जो लिख दिया वो ख़ुद है गवाही अपनी

जो नहीं लिक्खा अभी उस की बशारत दूँगा

एक तरफ़ तिरे हुस्न की हैरत एक तरफ़ दुनिया

और दुनिया में देर तलक ठहरा नहीं जा सकता

क्या अजब कार-ए-तहय्युर है सुपुर्द-ए-नार-ए-इश्क़

घर में जो था बच गया और जो नहीं था जल गया

आईना ख़ुद भी सँवरता था हमारी ख़ातिर

हम तिरे वास्ते तय्यार हुआ करते थे

क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं

कितनी आज़ादी से हम अपनी हदों में क़ैद हैं

इंतिज़ार और दस्तकों के दरमियाँ कटती है उम्र

इतनी आसानी से तो बाब-ए-हुनर खुलता नहीं

और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशी

हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं

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