इरफ़ान सत्तार के शेर
बराए अहल-ए-जहाँ लाख कज-कुलाह थे हम
गए हरीम-ए-सुख़न में तो आजिज़ी से गए
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टैग : आजिज़ी
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यूँही रुका था दम लेने को, तुम ने क्या समझा?
हार नहीं मानी थी बस सुस्ताने बैठा था
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क्या बताऊँ कि जो हंगामा बपा है मुझ में
इन दिनों कोई बहुत सख़्त ख़फ़ा है मुझ में
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उस की ख़्वाहिश पे तुम को भरोसा भी है उस के होने न होने का झगड़ा भी है
लुत्फ़ आया तुम्हें गुमरही ने कहा गुमरही के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल
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टैग : भरोसा
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आबाद मुझ में तेरे सिवा और कौन है?
तुझ से बिछड़ रहा हूँ तुझे खो नहीं रहा
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टैग : जुदाई
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राज़-ए-हक़ फ़ाश हुआ मुझ पे भी होते होते
ख़ुद तक आ ही गया 'इरफ़ान' भटकता हुआ मैं
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तुम आ गए हो तो अब आईना भी देखेंगे
अभी अभी तो निगाहों में रौशनी हुई है
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टैग : स्वागत
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ये कैसे मलबे के नीचे दबा दिया गया हूँ
मुझे बदन से निकालो मैं तंग आ गया हूँ
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रोक लेता है अबद वक़्त के उस पार की राह
दूसरी सम्त से जाऊँ तो अज़ल पड़ता है
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टैग : अज़ल
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नहीं नहीं मैं बहुत ख़ुश रहा हूँ तेरे बग़ैर
यक़ीन कर कि ये हालत अभी अभी हुई है
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मैं जाग जाग के किस किस का इंतिज़ार करूँ
जो लोग घर नहीं पहुँचे वो मर गए होंगे
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टैग : फ़साद
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कोई मिला तो किसी और की कमी हुई है
सो दिल ने बे-तलबी इख़्तियार की हुई है
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मैं तुझ से साथ भी तो उम्र भर का चाहता था
सो अब तुझ से गिला भी उम्र भर का हो गया है
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तेरे माज़ी के साथ दफ़्न कहीं
मेरा इक वाक़िआ नहीं मैं हूँ
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मंज़रों से बहलना ज़रूरी नहीं घर से बाहर निकलना ज़रूरी नहीं
दिल को रौशन करो रौशनी ने कहा रौशनी के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल
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टैग : रौशनी
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वो गुफ़्तुगू जो मिरी सिर्फ़ अपने-आप से थी
तिरी निगाह को पहुँची तो शाइरी हुई है
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उसे बताया नहीं हिज्र में जो हाल हुआ
जो बात सब से ज़रूरी थी वो छुपा गया हूँ
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इस में नहीं है दख़्ल कोई ख़ौफ़ ओ हिर्स का
इस की जज़ा, न इस की सज़ा है, ये इश्क़ है
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राख के ढेर पे क्या शोला-बयानी करते
एक क़िस्से की भला कितनी कहानी करते
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तअल्लुक़ात के बर्ज़ख़ में ऐन-मुमकिन है
ज़रा सा दुख वो मुझे दे तो मैं तिरा हो जाऊँ
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हाँ ख़ुदा है, इस में कोई शक की गुंजाइश नहीं
इस से तुम ये मत समझ लेना ख़ुदा मौजूद है
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यहाँ जो है कहाँ उस का निशाँ बाक़ी रहेगा
मगर जो कुछ नहीं वो सब यहाँ बाक़ी रहेगा
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ताब-ए-यक-लहज़ा कहाँ हुस्न-ए-जुनूँ-ख़ेज़ के पेश
साँस लेने से तवज्जोह में ख़लल पड़ता है
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ज़रा अहल-ए-जुनूँ आओ हमें रस्ता सुझाओ
यहाँ हम अक़्ल वालों का ख़ुदा गुम हो गया है
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मुझे दुख है कि ज़ख़्म ओ रंज के इस जमघटे में
तुम्हारा और मेरा वाक़िआ गुम हो गया है
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ये उम्र की है बसर कुछ अजब तवाज़ुन से
तिरा हुआ न ही ख़ुद से निबाह मैं ने किया
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ज़ख़्म-ए-फ़ुर्क़त को पलकों से सीते हुए साँस लेने की आदत में जीते हुए
अब भी ज़िंदा हो तुम ज़िंदगी ने कहा ज़िंदगी के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल
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टैग : ज़िंदगी
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इक चुभन है कि जो बेचैन किए रहती है
ऐसा लगता है कि कुछ टूट गया है मुझ में
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टैग : बेक़रारी
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वो जिस ने मुझ को तिरे हिज्र में बहाल रखा
तू आ गया है तो क्या उस से बेवफ़ा हो जाऊँ
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तेरी सूरत में तुझे ढूँड रहा हूँ मैं भी
ग़ालिबन तू भी मुझे ढूँड रहा है मुझ में
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न पूछिए कि वो किस कर्ब से गुज़रते हैं
जो आगही के सबब ऐश-ए-बंदगी से गए
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टैग : आगही
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किसी आहट में आहट के सिवा कुछ भी नहीं अब
किसी सूरत में सूरत के सिवा क्या रह गया है
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टैग : आहट
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ऐसी दुनिया में कब तक गुज़ारा करें तुम ही कह दो कि कैसे गवारा करें
रात मुझ से मिरी बेबसी ने कहा बेबसी के लिए एक ताज़ा ग़ज़ल
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टैग : बेबसी
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किस अजब साअत-ए-नायाब में आया हुआ हूँ
तुझ से मिलने मैं तिरे ख़्वाब में आया हुआ हूँ
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टैग : ख़्वाब
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हर एक रंज उसी बाब में किया है रक़म
ज़रा सा ग़म था जिसे बे-पनाह मैं ने किया
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जो अक़्ल से बदन को मिली थी, वो थी हवस
जो रूह को जुनूँ से मिला है, ये इश्क़ है
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तुम्हें फ़ुर्सत हो दुनिया से तो हम से आ के मिलना
हमारे पास फ़ुर्सत के सिवा क्या रह गया है
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