काशिफ़ हुसैन ग़ाएर के शेर
कुछ ऐसी भी दिल की बातें होती हैं
जिन बातों को ख़ल्वत कम पड़ जाती है
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कुछ देर बैठ जाइए दीवार के क़रीब
क्या कह रहा है साया-ए-दीवार जानिए
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क्या कहें और दिल के बारे में
हम मुलाज़िम हैं इस इदारे में
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नींद उड़ने लगी है आँखों से
धूल जमने लगी है बिस्तर पर
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पेड़ हो या कि आदमी 'ग़ाएर'
सर-बुलंद अपनी आजिज़ी से हुआ
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टैग : आजिज़ी
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न हम वहशत में अपने घर से निकले
न सहरा अपनी वीरानी से निकला
मेरे अंदर का शोर है मुझ में
वर्ना बाहर तो ख़ामुशी है यहाँ
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मुझ से रस्तों का बिछड़ना नहीं देखा जाता
मुझ से मिलने वो किसी मोड़ पे आया न करे
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मौत का क्या काम जब इस शहर में
ज़िंदगी जैसी बला मौजूद है
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ज़िंदगी में कसक ज़रूरी थी
ये ख़ला पुर तिरी कमी से हुआ
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ज़मीं आबाद होती जा रही है
कहाँ जाएगी तन्हाई हमारी
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टैग : तन्हाई
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ज़िंदगी धूप में आने से खुली
साया दीवार उठाने से खुला
शोर जितना है काएनात में शोर
मेरे अंदर की ख़ामुशी से हुआ
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टैग : ख़ामोशी
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बने हैं काम सब उलझन से मेरे
यही अतवार हैं बचपन से मेरे
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कल रात जगाती रही इक ख़्वाब की दूरी
और नींद बिछाती रही बिस्तर मिरे आगे
क्या चाहती है हम से हमारी ये ज़िंदगी
क्या क़र्ज़ है जो हम से अदा हो नहीं रहा
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टैग : ज़िंदगी
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तेरा ख़याल तेरी तमन्ना तक आ गया
मैं दिल को ढूँढता हुआ दुनिया तक आ गया
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मुझ से मंसूब है ग़ुबार मिरा
क़ाफ़िले में न कर शुमार मिरा
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हमारे दिल की तरह शहर के ये रस्ते भी
हज़ार भेद छुपाए हुए से लगते हैं
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हमारी ज़िंदगी पर मौत भी हैरान है 'ग़ाएर'
न जाने किस ने ये तारीख़-ए-पैदाइश निकाली है
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टैग : जन्मदिन
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इन सितारों में कहीं तुम भी हो
इन नज़ारों में कहीं मैं भी हूँ
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ये हवा यूँ ही ख़ाक छानती है
या कोई चीज़ खो गई है यहाँ
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टैग : हवा
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ज़मीं हमवार हो कर रह गई है
उड़ी है धूल वो दामन से मेरे
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नज़र मिली तो नज़ारों में बाँट दी मैं ने
ये रौशनी भी सितारों में बाँट दी मैं ने
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इक दिन दुख की शिद्दत कम पड़ जाती है
कैसी भी हो वहशत कम पड़ जाती है
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सहरा में आ निकले तो मालूम हुआ
तन्हाई को वुसअत कम पड़ जाती है
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धूप साए की तरह फैल गई
इन दरख़्तों की दुआ लेने से
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टैग : साया
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हमारी ज़िंदगी पर मौत भी हैरान है ग़ाएर
न जाने किस ने ये तारीख़-ए-पैदाइश निकाली है
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हाल पूछा न करे हाथ मिलाया न करे
मैं इसी धूप में ख़ुश हूँ कोई साया न करे
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टैग : सोशल डिस्टेन्सिंग शायरी
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