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न्युयॉर्क, अमेरिका में रहने वाले हास्य-व्यंग के अग्रणी पाकिस्तानी शायर।

न्युयॉर्क, अमेरिका में रहने वाले हास्य-व्यंग के अग्रणी पाकिस्तानी शायर।

खालिद इरफ़ान के शेर

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दो चार दिन से मेरी समाअत ब्लाक थी

तुम ने ग़ज़ल पढ़ी तो मिरा कान खुल गया

मैं ने बस इतना ही लिखा आई-लौ-यू और फिर

उस ने आगे कर दिया था गाल इंटरनेट पर

बिकती है अब किताब भी कैसेट के रेट पे

कैसे बनेगा 'ग़ालिब' 'इक़बाल' का बजट

बिछड़े थे जब ये लोग महीना था जून का

सोहनी बना रही थी महींवाल का बजट

जो तुम परफ़्यूम में डुबकी लगा कर रोज़ आती हो

फ़ज़ा तुम से मोअत्तर है हवा में कुछ नहीं रक्खा

हों पैसे तो इस्तक़बालियों से कुछ नहीं होगा

किसी शायर को ख़ाली तालियों से कुछ नहीं होगा

कैसा अजीब आया है इस साल का बजट

मुर्ग़ी का जो बजट है वही दाल का बजट

गर्मी जो आई घर का हवा-दान खुल गया

साहिल पे जब गया तो हर इंसान खुल गया

अब घर के दरीचे में आएगी हवा कैसे

आगे भी प्लाज़ा है पीछे भी प्लाज़ा है

भूक तख़्लीक़ का टैलेंट बढ़ा देती है

पेट ख़ाली हो तो हम शेर नया कहते हैं

टीवी का ये मज़ाक़ अदीबों के साथ है

शाएर से दुगना रख दिया क़व्वाल का बजट

जो लुग़त को तोड़-मरोड़ दे जो ग़ज़ल को नस्र से जोड़ दे

मैं वो बद-मज़ाक़-ए-सुख़न नहीं वो जदीदिया कोई और है

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