mere rone ki haqiqat jis mein thi
mere rone kī haqīqat jis meñ thī
ek muddat tak vo kāġhaz nam rahā
TRANSLATION
where the true saga of my weeping was contained
sodden, moist for ages then, that paper remained
Rekhta
EXPLANATION
मीर की शायरी कल्पना की बुलंदी की शायरी है। सादा से शब्दों में सांसारिक विषयों को बयान करना मीर की शान है।
मीर ने ज़िंदगी भर ग़म को महसूस किया, ग़म को बरता और उसको अपनी शायरी के कैनवस पर उभारा। इस रंगा-रंगी ने उनके लहजे को अकेला और उनको ख़ुदा-ए-सुख़न बना दिया।
इस शे’र में शायर इंतहाई आसान लफ़्ज़ों में अपने दुख को बयान करता है। शायर कहता है उसकी ज़िंदगी दुख और दर्द में बसर हुई है। परेशानियों और मुसीबतों में गुज़री है। इस हद तक ग़मों में गुज़री है कि अपने ऊपर बीती हुई परेशानियों को जब उसने काग़ज़ पर लिखा और बहुत मुमकिन है कि ये काग़ज़ एक ख़त के रूप में हो जो उसने अपने महबूब को भेजा हो, तो शिद्दत-ए-ग़म से उसके आँसू इस काग़ज़ या ख़त में समाहित हो गए। बाद में वो काग़ज़ आँसुओं के प्रभाव से एक लंबे समय तक रह गया यानी नम रहा।
इस ऊपरी मायने के अलावा एक और प्रभाव भी इस शे’र से उभर कर आता है और वो ये है कि शायर की दुखी ज़िंदगी की कहानी जिस ख़त में या जिस काग़ज़ पर लिखी थी वो काग़ज़ उस तहरीर के दुख से भरे होने की वजह से जैसे दर्द की तस्वीर बन कर रह गया।
गम को बरतने और उसके अन्य दृष्टिकोणों के बयान करने का जो अंदाज़ मीर के हाँ है वो शायद ही कहीं और मिलता हो। मीर बहुत सरल शब्दों में अपने आपको बयान करते हैं और उनका वर्णन सांसारिक रंग हासिल कर लेता है। एक और ज़रूरी नुक्ता जो इस शे’र के तअल्लुक़ से बयान करना ज़रूरी है वो ये कि इस शे’र में एक हाल का ज़िक्र बढ़ा चढ़ा कर किया गया है मगर ये अतिशयोक्ति बहुत हसीन है, जिसने शे’र के क्रा़फ्ट को बहुत ही रंगीन बना दिया है, बहुत हसीन बना दिया है।
Sohail Azad
mere rone ki haqiqat jis mein thi
ek muddat tak wo kaghaz nam raha
TRANSLATION
where the true saga of my weeping was contained
sodden, moist for ages then, that paper remained
Rekhta
EXPLANATION
मीर की शायरी कल्पना की बुलंदी की शायरी है। सादा से शब्दों में सांसारिक विषयों को बयान करना मीर की शान है।
मीर ने ज़िंदगी भर ग़म को महसूस किया, ग़म को बरता और उसको अपनी शायरी के कैनवस पर उभारा। इस रंगा-रंगी ने उनके लहजे को अकेला और उनको ख़ुदा-ए-सुख़न बना दिया।
इस शे’र में शायर इंतहाई आसान लफ़्ज़ों में अपने दुख को बयान करता है। शायर कहता है उसकी ज़िंदगी दुख और दर्द में बसर हुई है। परेशानियों और मुसीबतों में गुज़री है। इस हद तक ग़मों में गुज़री है कि अपने ऊपर बीती हुई परेशानियों को जब उसने काग़ज़ पर लिखा और बहुत मुमकिन है कि ये काग़ज़ एक ख़त के रूप में हो जो उसने अपने महबूब को भेजा हो, तो शिद्दत-ए-ग़म से उसके आँसू इस काग़ज़ या ख़त में समाहित हो गए। बाद में वो काग़ज़ आँसुओं के प्रभाव से एक लंबे समय तक रह गया यानी नम रहा।
इस ऊपरी मायने के अलावा एक और प्रभाव भी इस शे’र से उभर कर आता है और वो ये है कि शायर की दुखी ज़िंदगी की कहानी जिस ख़त में या जिस काग़ज़ पर लिखी थी वो काग़ज़ उस तहरीर के दुख से भरे होने की वजह से जैसे दर्द की तस्वीर बन कर रह गया।
गम को बरतने और उसके अन्य दृष्टिकोणों के बयान करने का जो अंदाज़ मीर के हाँ है वो शायद ही कहीं और मिलता हो। मीर बहुत सरल शब्दों में अपने आपको बयान करते हैं और उनका वर्णन सांसारिक रंग हासिल कर लेता है। एक और ज़रूरी नुक्ता जो इस शे’र के तअल्लुक़ से बयान करना ज़रूरी है वो ये कि इस शे’र में एक हाल का ज़िक्र बढ़ा चढ़ा कर किया गया है मगर ये अतिशयोक्ति बहुत हसीन है, जिसने शे’र के क्रा़फ्ट को बहुत ही रंगीन बना दिया है, बहुत हसीन बना दिया है।
Sohail Azad
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