अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद
ग़ज़ल 39
अशआर 10
अपने दामन की कुछ ख़बर है 'मजीद'
सोच कर ख़ुद को पारसा कहिए
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कैफ़-ओ-मस्ती सुरूर क्या मा'नी
ज़िंदगी में भी अब ख़ुशी कम है
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ज़िंदगी छोटी है सामान बहुत
और दिल के भी हैं अरमान बहुत
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न जाने किस की याद ने ली दिल में गुदगुदी
आइना देख देख के शरमा रहे हैं हम
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बेवफ़ा कहिए बा-वफ़ा कहिए
दिल में आए जो बरमला कहिए
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