अब्दुल मतीन नियाज़ के शेर
लोगों को अपनी फ़िक्र है लेकिन मुझे नदीम
बज़्म-ए-हयात-ओ-नज़्म-ए-गुलिस्ताँ की फ़िक्र है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
दिल ने हर दौर में दुनिया से बग़ावत की है
दिल से तुम रस्म-ओ-रिवायात की बातें न करो
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
वक़्त मोहलत न देगा फिर तुम को
तीर जिस दम कमान से निकला
-
टैग : तीर
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
हम-नफ़स ख़्वाब-ए-जुनूँ की कोई ता'बीर न देख
रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर न देख
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
कितने बे-नूर हैं ये हंगामे
मैं भरे शहर में भी हूँ तन्हा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अल्फ़ाज़ मदह-ख़्वाँ थे क़लम थे बिके हुए
कैसे तराश लेते कोई शाह-कार हम
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
इंतिशार-ओ-ख़ौफ़ हर इक सर में है
आफ़ियत से कौन अपने घर में है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
कितने ही ज़ख़्म हरे हैं मिरे सीने में 'नियाज़'
आप अब मुझ से इनायात की बातें न करो
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
बे-रुख़ी देख अब ज़माने की
मुद्दआ' क्यूँ ज़बान से निकला
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
बसा के दिल में तिरे ग़म तिरे सितम ऐ दोस्त
जहाँ जहाँ से भी गुज़रा मैं नग़्मा-ख़्वाँ गुज़रा
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड