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अब्दुल मतीन नियाज़

1929 | भोपाल, भारत

60 के दशक में उभरने वाले अहम शायरों में शामिल, गहरी समझ और घोर भावनात्मक रवय्ये की शायरी करने के लिए प्रसिद्ध

60 के दशक में उभरने वाले अहम शायरों में शामिल, गहरी समझ और घोर भावनात्मक रवय्ये की शायरी करने के लिए प्रसिद्ध

अब्दुल मतीन नियाज़ के शेर

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लोगों को अपनी फ़िक्र है लेकिन मुझे नदीम

बज़्म-ए-हयात-ओ-नज़्म-ए-गुलिस्ताँ की फ़िक्र है

दिल ने हर दौर में दुनिया से बग़ावत की है

दिल से तुम रस्म-ओ-रिवायात की बातें करो

वक़्त मोहलत देगा फिर तुम को

तीर जिस दम कमान से निकला

हम-नफ़स ख़्वाब-ए-जुनूँ की कोई ता'बीर देख

रक़्स करना है तो फिर पाँव की ज़ंजीर देख

कितने बे-नूर हैं ये हंगामे

मैं भरे शहर में भी हूँ तन्हा

अल्फ़ाज़ मदह-ख़्वाँ थे क़लम थे बिके हुए

कैसे तराश लेते कोई शाह-कार हम

इंतिशार-ओ-ख़ौफ़ हर इक सर में है

आफ़ियत से कौन अपने घर में है

कितने ही ज़ख़्म हरे हैं मिरे सीने में 'नियाज़'

आप अब मुझ से इनायात की बातें करो

बे-रुख़ी देख अब ज़माने की

मुद्दआ' क्यूँ ज़बान से निकला

बसा के दिल में तिरे ग़म तिरे सितम दोस्त

जहाँ जहाँ से भी गुज़रा मैं नग़्मा-ख़्वाँ गुज़रा

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