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आबरू शाह मुबारक

1685 - 1733 | दिल्ली, भारत

उर्दू शायरी के निर्माताओं में से एक, मीर तक़ी मीर के समकालीन।

उर्दू शायरी के निर्माताओं में से एक, मीर तक़ी मीर के समकालीन।

आबरू शाह मुबारक

ग़ज़ल 72

अशआर 78

दूर ख़ामोश बैठा रहता हूँ

इस तरह हाल दिल का कहता हूँ

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तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है

कहाँ है किस तरह की है किधर है

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आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है

राग है मय है चमन है दिलरुबा है दीद है

क़ौल 'आबरू' का था कि जाऊँगा उस गली

हो कर के बे-क़रार देखो आज फिर गया

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तुम नज़र क्यूँ चुराए जाते हो

जब तुम्हें हम सलाम करते हैं

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चित्र शायरी 1

 

ऑडियो 3

उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो

बढ़े है दिन-ब-दिन तुझ मुख की ताब आहिस्ता आहिस्ता

मगर तुम सीं हुआ है आश्ना दिल

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aah ko chahiye ek umr asar hote tak SHAMSUR RAHMAN FARUQI

 

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aah ko chahiye ek umr asar hote tak SHAMSUR RAHMAN FARUQI

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