अफ़सर आज़री के शेर
ख़ुशनुमा दाएरे बनते ही चले जाते हैं
दिल के तालाब में फेंका है ये कंकर किस ने
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अभी छिड़े ही न थे तज़्किरे बहारों के
शुआ-ए-हुस्न से सुलझे न थे दिमाग़ अभी
-
शेयर कीजिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड