अफ़ज़ल पेशावरी के शेर
इधर आओ मैं दिल की बात कह दूँ
कि तुम से तो कोई पर्दा नहीं है
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सूझती हैं सैंकड़ों बातें मुझे
हाथ से मौक़ा निकल जाने के बा'द
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लाख दुनिया ख़िलाफ़ हो जाए
आप का दिल तो साफ़ हो जाए
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मोहब्बत मैं भी करता हूँ मोहब्बत तुम भी करते हो
मगर दोनों में मुँह-देखी मोहब्बत कौन करता है
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हमेशा के लिए वो जा चुके हैं
ख़याल उन का मगर जाता नहीं है
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हुस्न को ला-जवाब कहते हैं
ग़ैरत-ए-आफ़्ताब कहते हैं
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मैं तो हुस्न-ए-नज़र समझता हूँ
लोग जिस को शबाब कहते हैं
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जो मेरे 'इल्म में नहीं आई
वो ख़ता तो मु'आफ़ हो जाए
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