Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर
Ahmad Ashfaq's Photo'

अहमद अशफ़ाक़

1969 | क़तर

अहमद अशफ़ाक़ के शेर

740
Favorite

श्रेणीबद्ध करें

चीख़ उठता है दफ़अतन किरदार

जब कोई शख़्स बद-गुमाँ हो जाए

बिकता रहता सर-ए-बाज़ार कई क़िस्तों में

शुक्र है मेरे ख़ुदा ने मुझे शोहरत नहीं दी

फ़ासले ये सिमट नहीं सकते

अब परायों में कर शुमार मुझे

बहुत बईद था मसअलों का हल होना

अना के पाँव से ज़ंजीर हम हटा सके

अजब ठहराव पैदा हो रहा है रोज़ शब में

मिरी वहशत कोई ताज़ा अज़िय्यत चाहती है

मेरी कम-गोई पे जो तंज़ किया करते हैं

मेरी कम-गोई के अस्बाब से ना-वाक़िफ़ हैं

ये अलग बात कि तज्दीद-ए-तअल्लुक़ हुआ

पर उसे भूलना चाहूँ तो ज़माने लग जाएँ

किसी की शख़्सियत मजरूह कर दी

ज़माने भर में शोहरत हो रही है

तर्क-ए-उल्फ़त के ब'अद भी 'अश्फ़ाक़'

तेरा रहता है इंतिज़ार मुझे

अब किसी ख़्वाब की ताबीर नहीं चाहता मैं

कोई सूरत पस-ए-तस्वीर नहीं चाहता मैं

लगता है कि इस दिल में कोई क़ैद है 'अश्फ़ाक़'

रोने की सदा आती है यादों के खंडर से

Recitation

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

Get Tickets
बोलिए