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अहमद रियाज़

अहमद रियाज़

ग़ज़ल 4

 

अशआर 5

कुछ इस तरह से लुटी है मता-ए-दीदा-ओ-दिल

कि अब किसी से भी ज़िक्र-ए-वफ़ा नहीं करते

ग़म-ए-हबीब ग़म-ए-ज़िंदगी ग़म-ए-दौराँ

किसी मक़ाम पे हम जी बुरा नहीं करते

फ़र्त-ए-ग़म-ए-हवादिस-ए-दौराँ के बावजूद

जब भी तिरे दयार से गुज़रे मचल गए

मैं नुक्ता-चीं नहीं हूँ मगर ये बताइए

वो कौन थे जो हँस के गुलों को मसल गए

शिकस्त-ए-अहद-ए-सितम पर यक़ीन रखते हैं

हम इंतिहा-ए-सितम का गिला नहीं करते

पुस्तकें 1

 

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