अहमद तारिक़ के शेर
तेरी आँखों तेरी ज़ुल्फ़ों का गिला कैसे उतारूँ
तेरे होंटों पर सफ़र करता क़लम थकता नहीं है
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बता ख़ुद को भला कैसे संवारूँ
मुझे ग़म आइनों में दिख रहा है
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हथेली पे लिख ले मिरा नाम तू
लकीरों में रचना मिरा काम है
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मेरी आँखों का रात दिन रोना
मेरे ख़्वाबों की आब-यारी है
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