अहमक़ फफूँदवी के शेर
ये कह रही है इशारों में गर्दिश-ए-गर्दूं
कि जल्द हम कोई सख़्त इंक़लाब देखेंगे
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जो अर्ज़ां है तो है उन की मता-ए-आबरू वर्ना
ज़रा सी चीज़ भी बेहद गिराँ है इस ज़माने में
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