ऐन ताबिश के रेखाचित्र
मेरे हमराज़-ए-जुनूँ शाम-ए-अलम के दमसाज़: भय्या साहब प्रोफ़ेसर हुसैनुल हक़
भय्या साहब को इस जहान-ए-फ़ानी से रुख़्सत हुए डेढ़ माह का ‘अर्सा गुज़र गया। ‘अर्सा-ए-हयात-ओ-मौत के दरमियान की कहानी तवील हो या मुख़्तसर मर्ग और माबा’द का अफ़्साना अपनी मशमूलात और कैफ़ियात में ऐसा अनंत है कि सिलसिला-हा-ए-रोज़-ओ-शब दौड़ते ही चले जाते हैं अपने