आइशा अय्यूब
ग़ज़ल 28
अशआर 14
इतना मसरूफ़ कर लिया ख़ुद को
ग़म भी आ कर ख़ुशी से लौट गए
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तुम्हारी ख़ुश-नसीबी है कि तुम समझे नहीं अब तक
अकेले-पन में और तन्हाई में जो फ़र्क़ होता है
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कुछ उम्र अपनी ज़ात का दुख झेलते रहे
कुछ उम्र काएनात का दुख झेलना पड़ा
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एक लड़की चूड़ियाँ खनका रही थी और तभी
उस खनक से उठ रहा था जैसे ज़िंदानी का शोर
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- ग़ज़ल देखिए
उस से कोई गिला भी करें हम तो क्या करें
वा'दा कोई किया ही नहीं उस ने आज तक
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