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अकबर इलाहाबादी के क़िस्से
ख़ालू के आलू
अकबर इलाहाबादी दिल्ली में ख़्वाजा हसन निज़ामी के हाँ मेहमान थे। सब लोग खाना खाने लगे तो आलू की तरकारी अकबर को बहुत पसंद आयी। उन्होंने ख़्वाजा साहब की दुख़्तर हूर बानो से (जो खाना खिला रही थी) पूछा कि बड़े अच्छे आलू हैं, कहाँ से आए हैं? उसने जवाब दिया कि
हूरों का नुज़ूल
अकबर इलाहाबादी एक बार ख़्वाजा हसन निज़ामी के हाँ मेहमान थे। दो तवाइफ़ें हज़रत निज़ामी से ता’वीज़ लेने आईं। ख़्वाजा साहब गाव तकिया से लगे बैठे थे। अचानक उनके दोनों हाथ ऊपर को उठे और इस तरह फैल गए जैसे बच्चे को गोद में लेने के लिए फैलते हैं और बेसाख़्ता ज़बान
सब कुछ अल्लाह ने दे रखा है शौहर के सिवा
कलकत्ता की मशहूर मुग़न्निया गौहर जान एक मर्तबा इलाहाबाद गई और जानकी बाई तवाइफ़ के मकान पर ठहरी। जब गौहर जान रुख़्सत होने लगी तो अपनी मेज़बान से कहा कि “मेरा दिल ख़ान बहादुर सय्यद अकबर इलाहाबादी से मिलने को बहुत चाहता है।” जानकी बाई ने कहा कि “आज मैं वक़्त
अंतड़ियों का क़ुल हु-वल्लाह पढ़ना
एक मर्तबा हज़रत अकबर इलाहाबादी के एक दोस्त ने उन्हें एक टोपी दिखाई जिस पर क़ुल हु अल्लाह कढ़ा हुआ था। आपने देखते ही फ़रमाया, “भई बहुत उम्दा है। किसी दा’वत में खाना मिलने में देर हो जाए तो ये टोपी पहन लिया करो। सब समझ लेंगे अंतड़ियाँ क़ुल हु-वल्लाह
मुझे इल्म आया न उन्हें अक़्ल
अकबर के मशहूर हो जाने पर बहुत से लोगों ने उनकी शागिर्दी के दा’वे कर दिये। एक साहब को दूर की सूझी। उन्होंने ख़ुद को अकबर का उस्ताद मशहूर कर दिया। अकबर को जब ये इत्तिला पहुंची कि हैदराबाद में उनके एक उस्ताद का ज़ुहूर हुआ है, तो कहने लगे, “हाँ मौलवी साहब
डाढ़ी से मूँछ तक
नामवर अदीब और शायर मरहूम सय्यद अकबर हुसैन अकबर इलाहाबादी अपनी रौशन ख़्याली के बावजूद मशरिक़ी तहज़ीब के दिलदादा थे और वज़ के पाबंद। दाढ़ी मुंडवाने का रिवाज हिंदुस्तान में आ’म था। लेकिन लार्ड कर्ज़न जब हिंदुस्तान आए तो उनकी देखा-देखी मूँछ भी सफ़ाया