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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अकबर हैदराबादी

ग़ज़ल 22

नज़्म 9

अशआर 21

आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है

है तमन्ना का वही जो ज़िंदगी का हाल है

चराग़-ए-राहगुज़र लाख ताबनाक सही

जला के अपना दिया रौशनी मकान में ला

मुश्किल ही से कर लेती है दुनिया उसे क़ुबूल

ऐसी हक़ीक़त जिस में फ़साना कम कम होता है

रुत बदली तो ज़मीं के चेहरे का ग़ाज़ा भी बदला

रंग मगर ख़ुद आसमान ने बदले कैसे कैसे

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लबों पर तबस्सुम तो आँखों में आँसू थी धूप एक पल में तो इक पल में बारिश

हमें याद है बातों बातों में उन का हँसाना रुलाना रुलाना हँसाना

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आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है

घुटन अज़ाब-ए-बदन की न मेरी जान में ला

जब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा

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