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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अकबर मासूम

1960 - 2019 | कराची, पाकिस्तान

अकबर मासूम के शेर

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रह जाएगी ये सारी कहानी यहीं धरी

इक रोज़ जब मैं अपने फ़साने में जाऊँगा

अब तेरा खेल खेल रहा हूँ मैं अपने साथ

ख़ुद को पुकारता हूँ और आता नहीं हूँ मैं

अब तुझे मेरा नाम याद नहीं

जब कि तेरा पता रहा हूँ मैं

वो और होंगे जो कार-ए-हवस पे ज़िंदा हैं

मैं उस की धूप से साया बदल के आया हूँ

है मुसीबत में गिरफ़्तार मुसीबत मेरी

जो भी मुश्किल है वो मेरे लिए आसानी है

ऐसा एक मक़ाम हो जिस में दिल जैसी वीरानी हो

यादों जैसी तेज़ हवा हो दर्द से गहरा पानी हो

मैं किसी और ही आलम का मकीं हूँ प्यारे

मेरे जंगल की तरह घर भी है सुनसान मिरा

जिस के बग़ैर जी नहीं सकते थे जा चुका

पर दिल से दर्द आँख से आँसू कहाँ गया

तिरे ग़ुरूर की इस्मत-दरी पे नादिम हूँ

तिरे लहू से भी दामन है दाग़दार मिरा

उजाला है जो ये कौन-ओ-मकाँ में

हमारी ख़ाक से लाया गया है

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