1923 - 2006 | भोपाल, भारत
प्रगतिवादी विचारधारा के शायर, प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव भी रहे
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किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं
तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है
ज़िंदगी तेरी हक़ीक़त नहीं देखी जाती
ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले
याद आते हैं बहुत दिल को दुखाने वाले
अख़्तर सईद ख़ाँ
शख़्सियत और फ़न
2005
Bayan Aur
1996
Nigah
1985
निगह-ए-वापसीं
Nigh-e-Wapseen
तराज़-ए-दवाम
1994
Taraz-e-Dawam
अख़्तर सईद खाँ
शख़्सियत और अदबी ख़िदमात
1993
ज़िंदगी क्या हुए वो अपने ज़माने वाले याद आते हैं बहुत दिल को दुखाने वाले
ये दश्त वो है जहाँ रास्ता नहीं मिलता अभी से लौट चलो घर अभी उजाला है
ज़माना इश्क़ के मारों को मात क्या देगा दिलों के खेल में ये जीत हार कुछ भी नहीं
तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है ज़िंदगी तेरी हक़ीक़त नहीं देखी जाती
किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं
बहुत क़रीब रही है ये ज़िंदगी हम से बहुत अज़ीज़ सही ए'तिबार कुछ भी नहीं
निगाहें मुंतज़िर हैं किस की दिल को जुस्तुजू क्या है मुझे ख़ुद भी नहीं मालूम मेरी आरज़ू क्या है
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