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Akhtar Shumar's Photo'

अख्तर शुमार

1960 - 2022 | पाकिस्तान

अख्तर शुमार के शेर

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मैं तो इस वास्ते चुप हूँ कि तमाशा बने

तू समझता है मुझे तुझ से गिला कुछ भी नहीं

अभी सफ़र में कोई मोड़ ही नहीं आया

निकल गया है ये चुप-चाप दास्तान से कौन

मैं घर को फूँक रहा था बड़े यक़ीन के साथ

कि तेरी राह में पहला क़दम उठाना था

मुद्दतों में आज दिल ने फ़ैसला आख़िर दिया

ख़ूब-सूरत ही सही लेकिन ये दुनिया झूट है

अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं

उस को खो कर तो मिरे पास रहा कुछ भी नहीं

वो मुस्कुरा के कोई बात कर रहा था 'शुमार'

और उस के लफ़्ज़ भी थे चाँदनी में बिखरे हुए

तू ने एक उम्र के बाद पूछा है हाल-ए-दिल

वही दर्द-ओ-ग़म वही हसरतें मिरे साथ हैं

मिरी निगाह की वुसअत भी इस में शामिल कर

मिरी ज़मीन पे तेरा ये आसमाँ कम है

मेरी रुस्वाई अगर साथ देती मेरा

यूँ सर-ए-बज़्म मैं इज़्ज़त से निकलता कैसे

मैं ज़िंदगी के सफ़र में था मश्ग़ला उस का

वो ढूँड ढूँड के मुझ को गँवा दिया करता

पहाड़ भाँप रहा था मिरे इरादे को

वो इस लिए भी कि तेशा मुझे उठाना था

दिल के औराक़ में महकी हुई कलियों की तरह

एक इक याद तिरी हस्ब-ए-ज़रूरत रख ली

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