अलीम अफ़सर के शेर
किराया-दार बदलना तो उस का शेवा था
निकाल कर वो बहुत ख़ुश हुआ मकाँ से मुझे
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सदाएँ जिस्म की दीवार पार करती हैं
कोई पुकार रहा है मगर कहाँ से मुझे
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तुयूर थे जो घोंसलों में पैकरों के उड़ गए
अकेले रह गए हैं अपने ख़्वाब के मकाँ में हम
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