अली इफ़्तिख़ार ज़ाफ़री के शेर
नींद आती है मगर जाग रहा हूँ सर-ए-ख़्वाब
आँख लगती है तो ये उम्र गुज़र जानी है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अव्वलीं चाल से आगे नहीं सोचा मैं ने
ज़ीस्त शतरंज की बाज़ी थी सो मैं हार गया
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
किसी की आँख का तारा हुआ करते थे हम भी तो
अचानक शाम का तारा नज़र आया तो याद आया
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
तुम किसी संग पे अब सर को टिका कर सो जाओ
कौन सुनता है शब-ए-ग़म का फ़साना सर-ए-राह
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड