अमानुल्लाह ख़ालिद के शेर
उन की तमन्ना मेरी कोशिश बाहम वा'दे और क़स्में
कुछ मेरी तक़दीर के सदक़े बाक़ी सब हालात के नाम
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मैं तुझे भूल न पाया तो ये चाहत है मिरी
याद रक्खा है जो तू ने तिरा एहसाँ जानाँ
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वक़्त की तेज़ हवाओं ने अजब मोड़ लिया
फूल से हाथ जो थे उन में भी पत्थर निकले
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किताब ज़ीस्त में बाब-ए-अलम भी हो महफ़ूज़
सियाह-रात का मंज़र सहर में रक्खा जाए
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दर्द ऐसा दिया एहसास-ए-वफ़ा ने हम को
न दवा ने ही शिफ़ा दी न दुआ ने हम को
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रुको तो यूँ कि ठहर जाए गर्दिश-ए-दौराँ
चलो तो ऐसे कि सारे जहाँ को साथ लिए
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जिसे भी देखो वही अजनबी सा लगता है
तुम्हारे शहर में कोई भी आश्ना न मिला
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मैं ही था इक आँख न भाओं वो तो अब भी यार हैं तेरे
जिन लोगों ने तेरा चर्चा बाज़ारों में आम किया
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हर दर पे इक बाँग लगावें भला करो बस भला करो
एक ही शिकवा एक ही नाला सुब्ह किया और शाम किया
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