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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Amar Singh Figar's Photo'

अमर सिंह फ़िगार

1913

अमर सिंह फ़िगार के शेर

भीग जाने पर भी जो बुझता था

आज वो शो'ला धुआँ होने को है

शायद निकल ही आए कोई चारागर 'फ़िगार'

इक बार और देख सदा कर के शहर में

जोश-ए-तकमील-ए-तमन्ना है ख़ुदा ख़ैर करे

ख़ाक होने का अंदेशा है ख़ुदा ख़ैर करे

भूले से गया हूँ फ़रिश्तों के देस में

किस से पता करूँ कि यहाँ फ़र्द कौन है

हर ख़ुशी दिल से क्यूँ लगा बैठें

किस में ग़म हो पता नहीं होता

तू ये पूछ मिरे गाँव में हैं घर कितने

ये पूछ कौन से घर में अज़ाब कितने हैं

फूल तो क्या ख़ार भी मंज़ूर हैं

बे-रुख़ी से यूँ मगर फेंको नहीं

मचलती शोख़ मौजों को मैं अपने नाम क्यूँ लिक्खूँ

कि आख़िर ख़ुश्क होगा मौसम-ए-बरसात का दरिया

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