अमजद हैदराबादी
ग़ज़ल 2
अशआर 3
झोलियाँ सब की भरती जाती हैं
देने वाला नज़र नहीं आता
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ढूँडती हैं जिसे मिरी आँखें
वो तमाशा नज़र नहीं आता
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बर्बाद न कर बेकस का चमन बेदर्द ख़िज़ाँ से कौन कहे
ताराज न कर मेरा ख़िर्मन उस बर्क़-ए-तपाँ से कौन कहे
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