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अमजद नजमी

1899 - 1974

अमजद नजमी

ग़ज़ल 22

नज़्म 20

अशआर 13

वफ़ा की आड़ में क्या क्या हुई जफ़ा हम पर

जो दोस्ती यही ठहरी तो दुश्मनी क्या है

जब दिल ही नहीं है पहलू में फिर इश्क़ का सौदा कौन करे

अब उन से मोहब्बत कौन करे अब उन की तमन्ना कौन करे

किस ग़लत-फ़हमी में अपनी उम्र सारी कट गई

इक वफ़ा-ना-आश्ना को बा-वफ़ा समझा था मैं

वही सुब्ह-ओ-मसा वही शब-ओ-रोज़

ज़िंदगी है वबाल क्या कहिए

कुछ आलिम समझते हैं कुछ जाहिल समझते हैं

मोहब्बत की हक़ीक़त को बस अहल-ए-दिल समझते हैं

पुस्तकें 32

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