अनीसुर्रहमान के तलमीहात
आब-ए-हयात
आब-ए-हयात अर्थात अमृत या अमृत-जल से अभिप्राय वो पानी जिस के बारे में ये कल्पना की जाती है कि इस को पी लेने से मनुष्य को अमरत्व प्राप्त होता है, पौराणिक कथाओं में हज़रत-ए-ख़िज़्र (एक पैग़ंबर जिन को अमरत्व हासिल था कहते हैं उनके अधिकार क्षेत्र में जंगल
साक़ी-ए-कौसर
कौसर-ओ-तस्नीम स्वर्ग की दो नहरों के नाम हैं। प्रलय के दिन ये नहरें पैग़ंबर मुहम्मद साहब को दी जाएँगी और वो स्वर्ग में जाने वाले लोगों को इस से सैराब करेंगे। इसी वजह से मुहम्मद साहब को साक़ी-ए-कौसर (प्रलय के दिन जन्नत में जाने वालों को कौसर से शराब पिलाने
आईना-ए-सिकंदरी
सिकंदर और ईरान के बादशाह दारा के बीच कई युद्ध हुए। सिकंदर हर बार दारा की रणनीति की वजह से पराजित हो जाता था। असल में दारा जाम-ए-जहाँ-नुमा की मदद से सिकंदर की समस्त गतिविधियों का पता पहले ही लगा लेता था। अंततः सिकंदर ने अपने विचारकों की मदद से शहर-ए-अस्कंदरिया
बुर्राक़ और शब-ए-मेअराज
मेअराज की रात मोहामद साहब की सवारी के तौर पर जिस जानवर का इस्तेमाल किया गया था उसको बुर्राक़ कहते हैं। जिब्रईल (गब्रीएल या जिब्राइल क़ुरआन और बाइबिल में उल्लेखित देव-दूतों में से एक का नाम) जब मोहम्मद साहब को काबा से बैत-उल-मुक़द्दस ले जाना चाहा तो सवारी
जिब्रईल
इब्रानी भाषा में जिब्रईल (गब्रीएल या जिब्राइल क़ुरआन और बाइबिल में उल्लेखित देव-दूतों में से एक का नाम) का अर्थ मर्द-ए-ख़ुदा होता है। इस्लामी मान्यता के अनुसार जिब्रईल ईश्वर के चार पसंदीदा फ़रिश्तों में से एक है। पैग़म्बर / रसूल / ईश्वर-दूत तक ईश्वर का
बाग़-ए-इरम / बहिश्त-ए-शद्दाद
हज़रत दाऊद के पैग़म्बरी के ज़माने में शद्दाद एक अत्याचारी राजा था। दाऊद ने उसे एक ईश्वर की उपासना की ओर बुलाया और ईश्वर का पैग़ाम सुनाया। लेकिन उसने दाऊद की बातों को मानने से इंकार कर दिया। बाद में अपने ईश्वर होने का दावा भी किया और प्रमाण के तौर पर ज़मीन
तूर
हज़रत मूसा ने मदियन (Midian/Madyan,सउदी-अरब / हिजाज़ के एक शहर का नाम) शहर में लम्बा समय व्यतीत किया और अपने ससुर के मवेशियों की देख-रेख की। एक दिन मूसा अपने बाल-बच्चों के साथ बकरियाँ चराते- चराते मदियन से बहुत दूर निकल गए और चलते-चलते एक पहाड़ की घाटी
रोज़-ए-जज़ा / रोज़-ए-हश्र
इस्लाम धर्म के अनुसार संसार का एक समय निर्धारित है। उस के बाद ये दुनिया ख़त्म हो जाएगी। मनुष्यों को उनके कर्मों का बदला दिया जाएगा। वो क़यामत का दिन अर्थात प्रलय का दिन होगा। उसी दिन को रोज़-ए-जज़ा, रोज़-ए-सज़ा, रोज़-ए-हश्र और रोज़-ए-अद्ल कहा गया है। क़ुरआन
मन्न-ओ-सल्वा
फ़िरऔन / फैरो (मिस्र के राजाओं का उपनाम और हज़रत मूसा के संदर्भ में उस राजा का नाम जिस ने ख़ुदाई का दावा किया था) के अत्याचार से बच निकलने के बाद बनू-इसराईल (क़बीले का नाम) ने मूसा से पानी के लिए अनुरोध किया था। फिर मूसा ने एक चट्टान पर अपना ‘असा’ (लट्ठा)
यद-ए-बैज़ा
यद-ए-बैज़ा अरबी के दो शब्दों यद और बैज़ा का मिश्रण है। यद का मतलब होता है हाथ और बैज़ा का अर्थ है सफ़ेद और चमक-दार। हज़रत मूसा को तूर (पहाड़ का नाम) पर ईश्वर से वार्तालाप करने का गौरव प्राप्त हुआ था और वहीं ईश्वर ने उनको अपना दूत बनाया था। वहाँ ईश्वर
इब्लीस
क़ुरआन में इब्लीस (The devil / Satan) के बारे में विस्तार से बताया गया है। ये जिन्नात (Jinn) के वंश से था। एक समय में अपनी पूजा और तपस्या की वजह से इब्लीस फ़रिश्तों के मण्डल में शामिल हो गया था। ये भी कहा जाता है कि उस का उपनाम मुअल्लिम-उल-मलकूत (फ़रिश्तों
रिज़वाँ
रिजवान / रिज़वाँ एक फ़रिश्ते का नाम है जो जन्नत की निगरानी करता है। इसलिए उसको जन्नत का दारोग़ा भी कहा जाता है। पैगंबर मुहम्मद साहब जब मेराज की रात आसमानों कि सैर को गए थे तो जिब्रईल ने इस फ़रिश्ते से आप की मुलाक़ात करवाई थी। इसी वजह से बाग़-ए-रिज़वाँ
ज़ंबील-ए-अमर
ज़ंबील-ए-अमर ऐसी पौराणिक थैली जो अमरो-अय्यार के पास थी। इस थैली में एक दुनिया आबाद थी। वो जिस चीज़ को चाहता उस में रख लेता था और वो चीज़ ग़ायब हो जाती थी। असल में ख़्वाजा अमरो दास्तान-ए-अमीर हमज़ा का अत्यंत रोमांचक और दिलचस्प किरदार है। ये अत्यंत चालाक