अंजुम रहबर के शेर
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं
यूँ देखती है जैसे मुझे जानती नहीं
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माँ मुझे देख के नाराज़ न हो जाए कहीं
सर पे आँचल नहीं होता है तो डर होता है
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टैग : माँ
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दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में
मैं जिस को चाहती थी वो लड़का ग़रीब था
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'अंजुम' तुम्हारा शहर जिधर है उसी तरफ़
इक रेल जा रही थी कि तुम याद आ गए
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तुम को भुला रही थी कि तुम याद आ गए
मैं ज़हर खा रही थी कि तुम याद गए
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टैग : याद
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सच बात मान लीजिए चेहरे पे धूल है
इल्ज़ाम आइनों पे लगाना फ़ुज़ूल है
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कल शाम छत पे मीर-तक़ी-'मीर' की ग़ज़ल
मैं गुनगुना रही थी कि तुम याद आ गए
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टैग : मीर तक़ी मीर
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