अंकित दीक्षित अर्ज़ के शेर
अपना था जो वो भी अब अंजान हुआ
हम को चेहरा पढ़ने का नुक़्सान हुआ
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आँख तक जज़्बात मेरे आ गए
मुट्ठियाँ फिर भी दबाए रह गया
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बनाने बैठता हूँ तो तेरी तस्वीर बनती है
कोई पंछी कोई तितली कोई दरिया बनाने पर
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ज़माने ने बहुत कोशिश की तुम से दूर करने की
मैं रिश्ता तोड़ता कब हूँ जो आ जाऊँ निभाने पर
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