अनवर देहलवी के शेर
न मैं समझा न आप आए कहीं से
पसीना पोछिए अपनी जबीं से
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कुछ ख़बर होती तो मैं अपनी ख़बर क्यूँ रखता
ये भी इक बे-ख़बरी थी कि ख़बर-दार रहा
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शर्म भी इक तरह की चोरी है
वो बदन को चुराए बैठे हैं
सूरत छुपाइए किसी सूरत-परस्त से
हम दिल में नक़्श आप की तस्वीर कर चुके
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टैग : तस्वीर
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मिट्टी ख़राब है तिरे कूचे में वर्ना हम
अब तक तो जिस ज़मीं पे रहे आसमाँ रहे
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नींद का काम गरचे आना है
मेरी आँखों में पर नहीं आती
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टैग : नींद
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उन से हम लौ लगाए बैठे हैं
आग दिल में दबाए बैठे हैं
किस सोच में हैं आइने को आप देख कर
मेरी तरफ़ तो देखिए सरकार क्या हुआ
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वो जो गर्दन झुकाए बैठे हैं
हश्र क्या क्या उठाए बैठे हैं
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पी भी जा शैख़ कि साक़ी की इनायत है शराब
मैं तिरे बदले क़यामत में गुनहगार रहा
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बे-तरह पड़ती है नज़र उन की
ख़ैर दिल की नज़र नहीं आती
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हश्र को मानता हूँ बे-देखे
हाए हंगामा उस की महफ़िल का
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मिरी नुमूद से पैदा है रंग-ए-नाकामी
पिसा हुआ हूँ किसी के हिना लगाने का
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गोया कि सब ग़लत हैं मिरी बद-गुमानियाँ
देखे तो कोई शक्ल तुम्हारी हया के साथ
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मैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ छुट के जाऊँगा कहाँ
बाल बाँधा चोर हूँ हर तार-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार का
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हर शय को इंतिहा है यक़ीं है कि वस्ल हो
अर्सा बहुत खिंचा है मिरी इंतिज़ार का
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कैसी हया कहाँ की वफ़ा पास-ए-ख़ल्क़ क्या
हाँ ये सही कि आप को आना यहाँ न था
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क़ामत ही लिखा हम ने सदा जा-ए-क़यामत
क़ामत ने भुलाया तिरे इम्ला-ए-क़यामत
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नाकामी-ए-विसाल का पैग़ाम है मुझे
शीरीं का ज़िक्र भी न करो कोहकन के साथ
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अल्लाह-रे फ़र्त-ए-शौक़-ए-असीरी की शौक़ में
पहरों उठा उठा के सलासिल को देखना
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कमर बाँधी है तौबा तोड़ने पर
इलाही ख़ैर अज़्म-ए-नातवाँ की
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थक के बैठे हो दर-ए-सौम'अ पर क्या 'अनवर'
दो-क़दम और कि ये ख़ाना-ए-ख़ुम्मार रहा
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फेंकिए क्यूँ मय-ए-नाक़िस साक़ी
शैख़-साहिब की ज़ियाफ़त ही सही
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'अनवर' ने बदले जान के ली जिंस-ए-दर्द-ए-दिल
और इस पे नाज़ ये कि ये सौदा गिराँ न था
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नज़र आए क्या मुझ से फ़ानी की सूरत
कि पिन्हाँ हूँ दर्द-ए-निहानी की सूरत
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गरचे क्या कुछ थे मगर आप को कुछ भी न गिना
इश्क़ बरहम-ज़न-ए-काशाना-ए-पिंदार रहा
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