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अनवर सहारनपुरी

ग़ज़ल की क्लासिकी परम्परा से प्रभावित शायरी करने वाले शायर; ना’तिया कलाम के संग्रह भी प्रकाशित हुए

ग़ज़ल की क्लासिकी परम्परा से प्रभावित शायरी करने वाले शायर; ना’तिया कलाम के संग्रह भी प्रकाशित हुए

अनवर सहारनपुरी के शेर

वो ताज़ा दास्ताँ हूँ मरने के बा'द उन को

आएगा याद मेरा अफ़्साना ज़िंदगी का

जब फ़स्ल-ए-बहाराँ आती है शादाब गुलिस्ताँ होते हैं

तकमील-ए-जुनूँ भी होती है और चाक गरेबाँ होते हैं

नीची नज़रों से कर दिया घायल

अब ये समझे कि ये हया क्या है

जल्वा-ए-यार देख कर तूर पे ग़श हुए कलीम

अक़्ल-ओ-ख़िरद का काम क्या महफ़िल-ए-हुस्न-ओ-नाज़ में

मुक़द्दर से मिरे दोनों के दोनों बेवफ़ा निकले

उम्र-ए-बेवफ़ा पलटी फिर जा कर शबाब आया

शायद नियाज़-मंद को हासिल नियाज़ हो

हसरत से तक रहा हूँ तिरी रहगुज़र को मैं

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