अनवर ताबाँ
ग़ज़ल 16
अशआर 19
आएगा वो दिन हमारी ज़िंदगी में भी ज़रूर
जो अँधेरों को मिटा कर रौशनी दे जाएगा
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आज मग़्मूम क्यूँ हो ऐ 'ताबाँ'
कुछ तो बोलो कि माजरा क्या है
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ख़ुशी की बात और है ग़मों की बात और
तुम्हारी बात और है हमारी बात और
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ये यक़ीं है की मेरी उल्फ़त का
होगा उन पर असर कभी न कभी
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सुकून क़ल्ब को जिस से मिल जाए 'ताबाँ'
ग़ज़ल कोई ऐसी सुना दीजिएगा
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