अक़ील अब्बास जाफ़री के शेर
हर इश्क़ के मंज़र में था इक हिज्र का मंज़र
इक वस्ल का मंज़र किसी मंज़र में नहीं था
बस वही अश्क मिरा हासिल-ए-गिर्या है 'अक़ील'
जो मिरे दीदा-ए-नमनाक से बाहर है अभी
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड