अक़ील शादाब के दोहे
इक काँटे से दूसरा मैं ने लिया निकाल
फूलों का इस देस में कैसा पड़ा अकाल
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चादर मैली हो गई अब कैसे लौटाऊँ
अपने पिया के सामने जाते हुए शरमाऊँ
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जैसे शब्द में अर्थ है जैसे आँख में नीर
ऐसे तुझ में बसा हुआ वो महफ़िल का मीर
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