अरशद महमूद नाशाद के शेर
मैं तिरे शहर से गुज़रा हूँ बगूले की तरह
अपनी दुनिया में मगन अपने ख़यालात में गुम
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अपना क्या है कि रहे या न रहे
हाँ मगर तेरी ज़रूरत हैं हम
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तलाश-ए-ला-मकाँ में उड़ रहा हूँ
मगर मुझ से मकाँ लिपटा हुआ है
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हिसार-ए-ग़ैर में रहता है ये मकान-ए-वजूद
मैं ख़ल्वतों में भी अक्सर अज़ाब देखता हूँ
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