असग़र शमीम के शेर
कहाँ सर छुपाएँ पता ही नहीं
कि गिरने लगी घर की दीवार अब
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सारी दुनिया को जीतने वाला
अपने बच्चों से हार जाता है
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सर पे दस्तार जब सलामत है
दिल में आती हुई अना से डर
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तलातुम में कभी उतरा था 'असग़र'
समुंदर आज तक सहमा हुआ है
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शहर तो कब का जल चुका 'असग़र'
उठ रहा है मगर धुआँ अब तक
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दिल में 'असग़र' के ख़ुशियों की बरसात थी
हँसते हँसते वो क्यूँ ग़म-ज़दा हो गया
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