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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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अशअर नजमी

1960 | मुंबई, भारत

शायर और अदीब, प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘इस्बात’ के सम्पादक

शायर और अदीब, प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘इस्बात’ के सम्पादक

अशअर नजमी

ग़ज़ल 11

अशआर 15

अंधेरे में तजस्सुस का तक़ाज़ा छोड़ जाना है

किसी दिन ख़ामुशी में ख़ुद को तन्हा छोड़ जाना है

रफ़्ता रफ़्ता ख़त्म क़िस्सा हो गया होना ही था

वो भी आख़िर मेरे जैसा हो गया होना ही था

सौंपोगे अपने बा'द विरासत में क्या मुझे

बच्चे का ये सवाल है गूँगे समाज से

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जाने कब कोई कर मिरी तकमील कर जाए

इसी उम्मीद पे ख़ुद को अधूरा छोड़ जाना है

ज़हर में डूबी हुई परछाइयों का रक़्स है

ख़ुद से वाबस्ता यहाँ मैं भी नहीं तू भी नहीं

पुस्तकें 7

 

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