अशफ़ाक़ अहमद की कहानियाँ
गडरिया
यह कहानी फ़ारसी के एक सिख टीचर के गिर्द घूमती है, जो अपने मुस्लिम स्टूडेंट को न केवल मुफ़्त में पढ़ाता, बल्कि उसे अपने घर में भी रखता है। पढ़ाई के बाद स्टूडेंट नौकरी के लिए शहर चला जाता। विभाजन के दौर में वह वापस आता है तो एक जगह कुछ मुस्लिम नौजवानों को खड़े हुए पाता है। पास जाकर क्या देखता है कि उन्होंने उसके टीचर को चारों तरफ़ से घेरा हुआ। टीचर डरा हुआ ख़ामोश खड़ा है। वह उनके चंगुल से टीचर को बचाने की कोशिश करता है। मगर नफ़रत की आग में भड़की ख़ून की प्यासी भीड़ के सामने असहाय होकर रह जाता है।
अम्मी
मुफ़्लिसी में पले बढ़े एक बच्चे की कहानी, जो स्कूल के दिनों में अम्मी से मिला था। उसके बाद लाहौर के एक बाज़ार में उसकी अम्मी से मुलाक़ात हुई। तब वह एक दफ़्तर में नौकरी करने लगा था और जुआ खेलता था। अम्मी से मुलाक़ात के बाद उसे अपने दोस्त और अम्मी के बेटे के बारे में पता चला कि वह इंग्लैंड में पढ़ता है। अम्मी से उसकी मुलाक़ात बढ़ती जाती है और वह उनके साथ ही रहने लगता है। एक बार वह इंग्लैंड से आए अपने दोस्त का ख़त पढ़ता है जिसमें उनसे दो हज़ार रूपये की माँग की गई थी। अम्मी के पास पैसे नहीं हैं और वह उनके लिए अपने ज़ेवर बेचने जाती है। वो उनके पीछे उनके बैग से पचास रूपये चुरा लेता है और जुआ खेलने चला जाता है।
सफ़र दर सफ़र
यह एक ऐसे शख़्स की कहानी है, जो एक दरवेश के पास रूहानी ताक़त हासिल करने का रास्ता पूछने के लिए जाता है। मगर जब वहाँ उसकी पीर से मुलाक़ात होती है वह उसे रूहानी ताक़त से हटाकर ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ के फ़ायदे बताता है और कहता है कि नमाज़ की क़ज़ा है, मगर ख़िदमत की क़ज़ा नहीं।
तरक़्क़ी का इब्लीसी नाच
कहानी तरक्क़ी के निस्बत लोगों के बदलते मिज़ाज के गिर्द घूमती है। इंसान लगातार तरक्क़ी करता जा रहा है। तरक्क़ी की इस रफ़्तार में वह अक्सर उन चीज़ों की ईजाद कर रहा है जिनकी उसे कोई ज़रूरत ही नहीं है। हमारे पास कार, टेप रिकॉर्डर और दूसरी चीज़ें हैं। फिर वह उनके नए-नए वर्ज़न बना रहा है और इस चक्कर में हम उस इल्म को छोड़ते जा रहे हैं जो हमें हमारे पूर्वजों से मिला है और जिसकी हम सभी को ज़रूरत है।
पंजाब का दुपट्टा
कहानी एक पंजाबी लड़की की है जो एक मन्नत की दरख़्वास्त लेकर एक दरगाह पर कई दिन से लगातार खड़ी है। उसने अपना दुपट्टा दरगाह की चौखट से बाँधा हुआ है और लगातार खड़े होने से उसके पैर सूज गए हैं। यह दुपट्टा महज़ एक लड़की का ही नहीं है, बल्कि यह पंजाब और सिंध को आपस में बाँधने वाली डोर का प्रतीक भी है।
बाबा की तारीफ़
यह कहानी समाज और परिवार में बाबा के होने की अहमियत को बयान करती है। बाबा वे लोग होते हैं, जो दूसरों के लिए आसानियाँ पैदा करते हैं। बाबा होने के लिए ज़रूरी नहीं कि आप सड़कों पर फिरें, या गेरुवा और हरा कपड़ा पहनकर माँगने-खाने के लिए निकल जाएं। एक आम आदमी भी बाबा हो सकता है। इसके लिए लेखक ने अपने कॉलेज के ज़माने के एक दोस्त का ज़िक्र किया है, जिसने उस दौर में कई मुसीबत-ज़दा लोगों की बिना किसी ग़रज़ के मदद दी थी और उन लोगों ने उसे जी भर कर दुआओं से नवाज़ा था।