अश्क नियाज़ी के शेर
अगर है दूरी पे नाज़ तुझ मिरी मोहब्बत में भी कशिश है
वहीं तिरा आस्ताँ मिलेगा जहाँ जहाँ सर झुकाऊँगा मैं
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वुफ़ूर-ए-ग़म से मचल रहे थे दिल-ए-हज़ीं में हज़ार शिकवे
ये क्या ख़बर थी कि वक़्त-ए-पुरसिश सुकूत में डूब जाऊँगा मैं
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