अशोक साहनी के शेर
तिरी सूरत से हसीं और भी मिल जाएँगे
जिस में सीरत भी तिरी हो वो कहाँ से लाऊँ
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ज़माने ने लगाईं मुझ पे लाखों बंदिशें लेकिन
सर-ए-महफ़िल मिरी नज़रों ने तुम से गुफ़्तुगू कर ली
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