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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Ashraf Javed's Photo'

अशरफ़ जावेद

1955

अशरफ़ जावेद के शेर

फ़लक से रोज़ उतरते हैं रौशनी के ख़ुतूत

मगर चमके मुक़द्दर ग़रीब-ख़ानों के

अब तो चलना है किसी और ही रफ़्तार के साथ

जिस्म बिस्तर पे गिराऊँगा चला जाऊँगा

बसीत-ए-दश्त की हुर्मत को बाम-ओ-दर दे दे

मिरे ख़ुदाया मुझे भी तो एक घर दे दे

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