अताउल हसन के शेर
सिर्फ़ तस्वीर रह गई बाक़ी
जिस में हम एक साथ बैठे हैं
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अब वो कहता है कि ज़ंजीर बनी मेरे लिए
उस के पैरों में जो पायल कभी पहनाई थी
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धूप बढ़ी तो वो भी अपने अपने पाँव खींच गए
मैं ने अपने हिस्से की जिन पेड़ों को हरियाली दी
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किसी और को मैं तिरे सिवा नहीं चाहता
सो किसी से तेरा मुवाज़ना नहीं चाहता
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