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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

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अतीक़ुल्लाह

1941 | दिल्ली, भारत

ख्यातिप्राप्त आलोचक और शायर, दिल्ली विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफ़ेसर रहे

ख्यातिप्राप्त आलोचक और शायर, दिल्ली विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफ़ेसर रहे

अतीक़ुल्लाह

लेख 1

 

अशआर 28

आइना आइना तैरता कोई अक्स

और हर ख़्वाब में दूसरा ख़्वाब है

कुछ बदन की ज़बान कहती थी

आँसुओं की ज़बान में था कुछ

वो रात नींद की दहलीज़ पर तमाम हुई

अभी तो ख़्वाब पे इक और ख़्वाब धरना था

रेल की पटरी ने उस के टुकड़े टुकड़े कर दिए

आप अपनी ज़ात से उस को बहुत इंकार था

इस गली से उस गली तक दौड़ता रहता हूँ मैं

रात उतनी ही मयस्सर है सफ़र उतना ही है

ग़ज़ल 33

नज़्म 6

पुस्तकें 28

"दिल्ली" के और शायर

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