Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

अतहर नासिक के शेर

सूरज लिहाफ़ ओढ़ के सोया तमाम रात

सर्दी से इक परिंदा दरीचे में मर गया

न-जाने कौन सी मजबूरियाँ हैं जिन के लिए

ख़ुद अपनी ज़ात से इंकार करना पड़ता है

यक़ीन बरसों का इम्कान कुछ दिनों का हूँ

मैं तेरे शहर में मेहमान कुछ दिनों का हूँ

मैं उसे सुब्ह जानूँ जो तिरे संग नहीं

मैं उसे शाम मानूँ कि जो तेरे बिन है

मैं पूछ लेता हूँ यारों से रत-जगों का सबब

मगर वो मुझ से मिरे ख़्वाब पूछ लेते हैं

बनाना पड़ता है अपने बदन को छत अपनी

और अपने साए को दीवार करना पड़ता है

यहीं कहीं पे अदू ने पड़ाव डाला था

यहीं कहीं पे मोहब्बत ने हार मानी थी

कितने मअनी रखता है ज़रा ग़ौर तो कर

कूज़ा-गर के हाथ में होना मिट्टी का

Recitation

बोलिए