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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Azad Ansari's Photo'

आज़ाद अंसारी

1871 - 1942 | हैदराबाद, भारत

अल्ताफ़ हुसैन हाली के प्रमुख शिष्य

अल्ताफ़ हुसैन हाली के प्रमुख शिष्य

आज़ाद अंसारी के शेर

हम को मिल सका तो फ़क़त इक सुकून-ए-दिल

ज़िंदगी वगर्ना ज़माने में क्या था

दीदार की तलब के तरीक़ों से बे-ख़बर

दीदार की तलब है तो पहले निगाह माँग

अफ़्सोस बे-शुमार सुख़न-हा-ए-ग़ुफ़्तनी

ख़ौफ़-ए-फ़साद-ए-ख़ल्क़ से ना-गुफ़्ता रह गए

सज़ाएँ तो हर हाल में लाज़मी थीं

ख़ताएँ कर के पशेमानीयाँ हैं

वो काफ़िर-निगाहें ख़ुदा की पनाह

जिधर फिर गईं फ़ैसला हो गया

बंदा-परवर मैं वो बंदा हूँ कि बहर-ए-बंदगी

जिस के आगे सर झुका दूँगा ख़ुदा हो जाएगा

तलब-ए-आशिक़-ए-सादिक़ में असर होता है

गो ज़रा देर में होता है मगर होता है

किसे फ़ुर्सत कि फ़र्ज़-ए-ख़िदमत-ए-उल्फ़त बजा लाए

तुम बेकार बैठे हो हम बेकार बैठे हैं

अगर कार-ए-उल्फ़त को मुश्किल समझ लूँ

तो क्या तर्क-ए-उल्फ़त में आसानियाँ हैं

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