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अज़हर अब्बास के शेर

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हँसी मज़ाक़ की बातें यहीं पे ख़त्म हुईं

अब इस के बअ'द कहानी रुलाने वाली है

तू कहानी के बदलते हुए मंज़र को समझ

ख़ून रोते हुए किरदार की जानिब मत देख

जो रुकावट थी हमारी राह की

रास्ता निकला उसी दीवार से

अकेला मैं ही नहीं जा रहा हूँ बस्ती से

ये रौशनी भी मिरे साथ जाने वाली है

अपने वीराने का नुक़सान नहीं चाहता मैं

या'नी अब दूसरा इंसान नहीं चाहता मैं

यूँ तो हर एक शख़्स का अपना ही शोर है

लेकिन किसी से कोई यहाँ बोलता नहीं

मुझे बयान कर रहा था कोई शख़्स

मैं अपनी दास्तान ढूँढता रहा

हाथ पत्थर से हो गए मानूस

शौक़ कूज़ा-गरी का क्या कीजे

सुना रहा है कहानी हमें मकीनों की

मकाँ के साथ ये आधा जला हुआ बिस्तर

आँसुओं की तरह वजूद मिरा

बहता जाता है आबशार के साथ

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